Thursday, May 16, 2013

इंतज़ार और तड़प

लेखक : संदीप दत्ता                                         मई १६ , २०१ ३ 

दी दा रे यार कैसे करें   हम कोई तो बताये …
जो रूठे  हैं उन्हें कैसे मनाये  कोई तो बताये ।

कम्बख्त ये दूरियां बनी ही क्यों थी ,
किसने बनायी ये ..और आखिर बनी तो किस के  लिए?

यक़ीनन दिलों में खंज़र गुसेड कर खौफनाक सी हंसी के लिए ,
नहीं तो और क्या ?

मरहम का काम तो नहीं करती ये निगोड़ी, कलमुही दूरियां । 
ज़ख्मों पर  बाम तो नहीं लगाती ये दुरियाँ

फिर आखिर बनी ही क्यों ये बेरहम, बे ह या, और बेमतलब की ये  दूरियां


वो जिनकी राह तकते तकते थक गयीं हैं आखें , वो जिनके इज़हार को तरसता है दिल
वो कहाँ गम हैं वो कहाँ गु म हैं

रूह काँपती है इधर उनका हाल सोच कर, दुआ निकलती है उनकी खै रियत के  लिए ,

अब तो आँख झपकती ही नहीं, जो नींद आ सके एक पल भी  
फिर दिखते क्यों नहीं अब भी    आखिर वो कहाँ हैं, कहाँ है    कहाँ हैं ...