लेखक : संदीप दत्ता मई १६ , २०१ ३
दी दा रे यार कैसे करें हम कोई तो बताये …
जो रूठे हैं उन्हें कैसे मनाये कोई तो बताये ।
कम्बख्त ये दूरियां बनी ही क्यों थी ,
किसने बनायी ये ..और आखिर बनी तो किस के लिए?
यक़ीनन दिलों में खंज़र गुसेड कर खौफनाक सी हंसी के लिए ,
नहीं तो और क्या ?
मरहम का काम तो नहीं करती ये निगोड़ी, कलमुही दूरियां ।
ज़ख्मों पर बाम तो नहीं लगाती ये दुरियाँ
फिर आखिर बनी ही क्यों ये बेरहम, बे ह या, और बेमतलब की ये दूरियां
वो जिनकी राह तकते तकते थक गयीं हैं आखें , वो जिनके इज़हार को तरसता है दिल
वो कहाँ गम हैं वो कहाँ गु म हैं
रूह काँपती है इधर उनका हाल सोच कर, दुआ निकलती है उनकी खै रियत के लिए ,
अब तो आँख झपकती ही नहीं, जो नींद आ सके एक पल भी
फिर दिखते क्यों नहीं अब भी आखिर वो कहाँ हैं, कहाँ है कहाँ हैं ...
दी दा रे यार कैसे करें हम कोई तो बताये …
जो रूठे हैं उन्हें कैसे मनाये कोई तो बताये ।
कम्बख्त ये दूरियां बनी ही क्यों थी ,
किसने बनायी ये ..और आखिर बनी तो किस के लिए?
यक़ीनन दिलों में खंज़र गुसेड कर खौफनाक सी हंसी के लिए ,
नहीं तो और क्या ?
मरहम का काम तो नहीं करती ये निगोड़ी, कलमुही दूरियां ।
ज़ख्मों पर बाम तो नहीं लगाती ये दुरियाँ
फिर आखिर बनी ही क्यों ये बेरहम, बे ह या, और बेमतलब की ये दूरियां
वो जिनकी राह तकते तकते थक गयीं हैं आखें , वो जिनके इज़हार को तरसता है दिल
वो कहाँ गम हैं वो कहाँ गु म हैं
रूह काँपती है इधर उनका हाल सोच कर, दुआ निकलती है उनकी खै रियत के लिए ,
अब तो आँख झपकती ही नहीं, जो नींद आ सके एक पल भी
फिर दिखते क्यों नहीं अब भी आखिर वो कहाँ हैं, कहाँ है कहाँ हैं ...
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