Sunday, December 30, 2012

                                           शब्दों  की  महत्वता  और  टूटते  रिश्ते

दिसंबर 30, 2012

ये शब्दों  की  दुनिया है।  शब्दों  की  गरिमा  को  समझना कितना ज़रूरी हो चला है। पर वहीँ जो लोग इस बात को अभी तक नहीं समझ पाए , उनको उनके शब्दों की चुभन और असर का एहसास करा पाना कितना मुश्किल सा है।

हमारे रिश्ते शब्दों से ही तो बनते और बिगड़ते हैं। पर कितने लोग अभी तक समझ पाए हैं। फिर भी व्यंग भरी भाषा का प्रयोंग नहीं छोड़ते। वैसे ही अब सच्चे रिश्ते नहीं बन पते, जो बने हों उनकों हमारे चुभने वाले शब्द ज्यादा साँसे लेने नहीं देते। घृणा, व्यंग, आलोचना, ये सब रिश्तों की बर्बादी का कारण बनते चले जाते हैं और हम ज़रा सा कभी सोचते भी नहीं। आखिर क्यों?

रिश्ते नाते बहुत मुश्किल से बनते हैं क्या हम उन्हें यूँ ही ख़त्म करते जायेंगे?

काश लोग कुछ भी बोलने से पहले सोचते और अपने प्रियजनों से सोच समझकर वार्तालाप करते। दिक्कत तब होती है जब लोग लोग पहले तो कुछ भी कह जाते हैं और बाद में बिना गलती की गहराई का एहसास किये माफ़ी मांगना शुरू कर देते हैं।

माफ़ी तब मांगी जाती है जब वो दिल से शर्मिंदगी को व्यक्त करती हुई लग रही हो तभी वो माफ़ी सही मायने में क्षमा योग्य होती है।  

No comments: